महान राष्ट्र चिन्तक थे स्वामी विवेकानंद

चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा

"उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये !!”स्वामी विवेकानंद द्वारा कहे इस वाक्य ने उन्हें विश्व विख्यात बना दिया था। यह सूत्र वाक्य आज भी युवा मन को सर्वाधिक उद्वेलित करता है। जितनी बार भी पढ़ें, यह छोटा-सा प्रेरक वाक्य हर बार हमारे मन में नया जोश और ऊर्जा भर देता है। और यही वाक्य आज कई लोगो के जीवन का आधार भी बन चूका है। इसमें कोई शक नहीं की स्वामीजी आज भी अधिकांश युवाओ के आदर्श व्यक्ति है। स्वामी विवेकानंद भारत की संत परंपरा के उन चुनिंदा महापुरुषों में से एक हैं, जो समाज के लिए श्रद्धा के पात्र होने के साथ-साथ युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण दर्शन विदेशो में स्वामी विवेकानंद की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। प्रेरणा के अपार स्रोत स्वामी विवेकानंद की कही एक-एक बात हमें उर्जा से भर देती है। अपने अल्प जीवन में ही उन्होंने पूरे विश्व पर भारत और हिन्दुत्व की गहरी छाप छोड़ दी। भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश कालीन भारत में लोगो की परिस्थितियों को जाना, उसे समझा। बाद में उन्होंने यूनाइटेड स्टेट की यात्रा की जहां उन्होंने 1893 में विश्व धर्म सम्मलेन में भारतीयों के हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। शिकागो में दिया गया उनका भाषण आज भी लोकप्रिय है और हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का आभास कराता है।

स्वामी विवेकानंद का ध्यान बचपन से ही आध्यात्मिकता की और था। उनके गुरु रामकृष्ण का उनपर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, जिनसे उन्होंने जीवन जीने का सही उद्देश जाना, स्वयम की आत्मा को जाना और भगवान की सही परिभाषा को जानकर उनकी सेवा की और सतत अपने दिमाग को को भगवान के ध्यान में लगाये रखा। विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुवात “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है। जो शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने ने हिन्दू धर्म की पहचान कराते हुए कहे थे।

स्वामी विवेकानंद ने यूरोप, इंग्लैंड और यूनाइटेड स्टेट में हिन्दू शास्त्र की 100 से भी अधिक सामाजिक और वैयक्तिक कक्षाएं ली और भाषण भी दिए। भारत में विवेकानंद एक देशभक्त संत के नाम से जाने जाते है और उनका जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में मनाया जाता है। उनकी हमेशा से ये सोच रही है की आज का युवक को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति करने की जरुरत है। आज के युवाओ को अलग-अलग दिशा में भटकने की बजाये एक ही दिशा में ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। और अंत तक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिये। युवाओ को अपने प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करना चाहिये।

स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण आध्यात्मिक और वैज्ञानिक सोच का अद्वितीय संगम है। उन्होंने भारत को महज़ जमीन का एक टुकड़ा और सनातन परम्परा को महज़ एक व्यबस्था नही माना वल्कि उन्होंने दोनों को एक दुसरे का पूरक मानकर मानवीय विकाश का राह माना। अगर शारीर भारत है तो उसकी आत्मा उन्होंने हिन्दुत्व को ही माना। स्वामी जी के कार्यो ‘ प्रवचनों एवं उनके रचनाओं का अवलोकन करें तो तो उनके दूरदृष्टि सोच और विश्व कल्याण के लिए हिन्दुत्व की महता में ही सशक्त भारत की स्पष्ट खाका तैयार है। हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म के बारे में कई तरह की गलतफहमियां फैलायी जा रही हैं। लेकिन स्वामी जी ने पहले ही कहा था कि सहिष्णुता हमारे धर्म की खासियत है। उन्होंने कहा कि सहिष्णुता हमारे बीच जन्मजात है। किसी को हमें इसकी व्याख्या करने या सिखाने की जरूरत नहीं है। लेकिन उन्हें यह जानना चाहिए कि हिन्दू धर्म क्या है। यह जीवनशैली है।

एक स्थान पर स्वामीजी लिखते है- ‘‘अपने हिन्दुस्थान में शक्ति की कमी है| अन्य देशों की तुलना में हम दुर्बल हैं| शारीरिक दुर्बलता यह हमारे एक तिहाई दु:ख का कारण है| हम आलसी है| हम स्वार्थी है| हम एकत्र नहीं आ सकते| परस्पर का मत्सर किये बिना हम कोई काम ही नहीं कर सकते| हमें संगठित होने की आवश्यकता है| स्वामीजी के विचार में हिन्दू यह एक राष्ट्र है, यह नि:संदिग्ध रीति से स्पष्ट होता है| अमरिका तथा यूरोप में भाषण देते समय उन्होंने कई बार ‘हिन्दू नेशन’ इस शब्दावलिका प्रयोग किया है| इससे स्पष्ट होता है कि, उनके मन में हिन्दू -राष्ट्र यही भाव रहता था। भारत में हिन्दू धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा।

“ मै उस प्रभु का सेवक हूँ जिसे लोग मनुष्य कहतें है” मानवीय संवेदनाओं से पूरित राष्ट्रीय भाव की अथाह सागर में हिन्दुत्व रुपी मोती से विश्व को सनातन संस्कार और संस्कृति से अभिभूत कराने वाले महान राष्ट्र चिन्तक योगी स्वामी विवेकानंद जी का उपरोक्त कथन सदा सर्वदा अनुकरणीय रहेगा।